Monday 11 January 2016

Makar Sankranti main kay hota hai ?

                                    
                     What is Makar Sankranti ?
                                   

                             मकर संक्रांति क्या  है , और कब मनायी  जाती है .


                        मकर संक्रांति हमेशा 15 जनवरी को ही मनाया जाता  है ? . 



शताब्दी के अनुसार मकर संक्रान्ति मनायें जाने का क्रम कुछ इस प्रकार है- 


16 वी 17 वी शताब्दी में मकर संक्रान्ति 9 व 10 जनवरी को मनाई जाती थी। 
17 वी 18 वी शताब्दी में मकर संक्रान्ति 11 व 12 जनवरी को मनाई जाती थी।
 18 वी 19 वी शताब्दी में मकर संक्रान्ति 12 व 13 जनवरी को मनाई जाती थी। 
19 वी 20 वी शताब्दी में मकर संक्रान्ति 14 व 15 जनवरी को मनाई जायेंगी।
 21 वी 22 वी शताब्दी में मकर संक्रान्ति 14, 15 व 16 जनवरी को मनाई जायेंगी।





 मकर संक्रान्ति  हिन्दुओं का प्रमुख पर्व है। मकर संक्रान्ति पूरे भारत और नेपाल में किसी न किसी रूप में मनाया जाता है। पौष मास में जब सूर्य मकर राशि पर आता है तभी इस पर्व को मनाया जाता है। यह त्योहार जनवरी माह के चौदहवें या पन्द्रहवें दिन ही पड़ता है क्योंकि इसी दिन सूर्य धनु राशि को छोड़ मकर राशि में प्रवेश करता है। मकर संक्रान्ति के दिन से ही सूर्य की उत्तरायण गति भी प्रारम्भ होती है। इसलिये इस पर्व को कहीं-कहीं उत्तरायणी भी कहते हैं।










मकर संक्रान्ति का महत्व

शास्त्रों के अनुसार, दक्षिणायण को देवताओं की रात्रि अर्थात् नकारात्मकता का प्रतीक तथा उत्तरायण को देवताओं का दिन अर्थात् सकारात्मकता का प्रतीक माना गया है। इसीलिए इस दिन जप, तप, दान, स्नान, श्राद्ध, तर्पण आदि धार्मिक क्रियाकलापों का विशेष महत्व है। ऐसी धारणा है कि इस अवसर पर दिया गया दान सौ गुना बढ़कर पुन: प्राप्त होता है। इस दिन शुद्ध घी एवं कम्बल का दान मोक्ष की प्राप्ति करवाता है। जैसा कि निम्न श्लोक से स्पष्ठ होता है-


स भुक्त्वा सकलान भोगान अन्ते मोक्षं प्राप्यति॥


माघे मासे महादेव: यो दास्यति घृतकम्बलम।




मकर संक्रान्ति के अवसर पर गंगास्नान एवं गंगातट पर दान को अत्यन्त शुभ माना गया है। इस पर्व पर तीर्थराज प्रयाग एवं गंगासागर में स्नान को महास्नान की संज्ञा दी गयी है। सामान्यत: सूर्य सभी राशियों को प्रभावित करते हैं, किन्तु कर्क व मकर राशियों में सूर्य का प्रवेश धार्मिक दृष्टि से अत्यन्त फलदायक है। यह प्रवेश अथवा संक्रमण क्रिया छ:-छ: माह के अन्तराल पर होती है। भारत देश उत्तरी गोलार्ध में स्थित है। मकर संक्रान्ति से पहले सूर्य दक्षिणी गोलार्ध में होता है अर्थात् भारत से अपेक्षाकृत अधिक दूर होता है। इसी कारण यहाँ पर रातें बड़ी एवं दिन छोटे होते हैं तथा सर्दी का मौसम होता है। किन्तु मकर संक्रान्ति से सूर्य उत्तरी गोलार्द्ध की ओर आना शुरू हो जाता है। अतएव इस दिन से रातें छोटी एवं दिन बड़े होने लगते हैं तथा गरमी का मौसम शुरू हो जाता है। दिन बड़ा होने से प्रकाश अधिक होगा तथा रात्रि छोटी होने से अन्धकार कम होगा। अत: मकर संक्रान्ति पर सूर्य की राशि में हुए परिवर्तन को अंधकार से प्रकाश की ओर अग्रसर होना माना जाता है। प्रकाश अधिक होने से प्राणियों की चेतनता एवं कार्य शक्ति में वृद्धि होगी। ऐसा जानकर सम्पूर्ण भारतवर्ष में लोगों द्वारा विविध रूपों में सूर्यदेव की उपासना, आराधना एवं पूजन कर, उनके प्रति अपनी कृतज्ञता प्रकट की जाती है। सामान्यत: भारतीय पंचांग पद्धति की समस्त तिथियाँ चन्द्रमा की गति को आधार मानकर निर्धारित की जाती हैं, किन्तु मकर संक्रान्ति को सूर्य की गति से निर्धारित किया जाता है। इसी कारण यह पर्व प्रतिवर्ष १४ जनवरी को ही पड़ता है।




संक्रांति के इस पावन पर्व पर देश के कई क्षेत्रों में गंगा सहित कई नदियों, जलाशयों में हजारों श्रद्धालुओं ने डुबकी लगाई है। इस मौके पर श्रद्घालुओं ने गंगा स्नान के बाद दान-पुण्य किए। कड़कड़ाती ठंड के बावजूद सुबह से ही गंगा के विभिन्न घाटों में पहुंचकर लोगों ने स्नान किए। मान्यता है कि मकर संक्रांति के दिन गंगा में स्नान करने और गंगा तट पर तिल का दान करने से सारे पाप कट जाते हैं।


जानिए क्या है मकर संक्रान्ति का सही मतलब?

 पंडितों का कहना है कि सूर्य के धनु से मकर राशि में जाने से खरमास भी समाप्त हो जाता है और शुभ कार्य प्रारंभ हो जाते हैं। आज की संक्रांति बहुत खास है और आज के दिन किये गये दान-पुण्य हर जातक के लिए शुभ है। इस दिन को  गुजरात, राजस्थान और उत्तर प्रदेश में पतंग महोत्सव के रूप में भी मनाया जाता है।


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